डेंगू वायरस पर खत्‍म होता जा रहा है टीकों का प्रभाव

डेंगू वायरस पर खत्‍म होता जा रहा है टीकों का प्रभाव

सेहतराग टीम

एक ओर जहां देश के कई हिस्‍से डेंगू के खतरे से निपटने में जुटे हैं वहीं च‍िकित्‍सा क्षेत्र से एक बुरी खबर आई है। नए अध्‍ययनों के अनुसार डेंगू के वायरस खुद को तेजी से बदल रहे हैं और इसके कारण डेंगू के रोकथाम के लिए बनाए गए टीकों का असर अब डेंगू के वायरस पर कम होता जा रहा है। यही नहीं डेंगू के इलाज के लिए जिन दवाओं का इस्‍तेमाल होता था उनका असर भी कम हो रहा है। पूरी दुनिया में डेंगू का वायरस खासकर गर्म देशों में हर साल अपना कहर दिखाता है और हर साल करीब 40 करोड़ लोग इस वायरस की चपेट में आते हैं। कई लोग इसके कारण हर वर्ष मौत के मुंह में समा जाते हैं।

पीएलओएस पैथोजेन्स पत्रिका में प्रकाशित एक अनुसंधान में किए गए दावे के अनुसार डेंगू वाहक मच्छर के 29 डिग्री सेल्सियस के शारीरिक तापमान में इस विषाणु के डीईएनवी 2 स्ट्रेन के ‘स्मूथ स्फेरिकल सरफेस पार्टिकल्स’ (चिकनी सतह वाले कण) होते हैं। अमेरिका की ‘टेक्सास मेडिकल ब्रांच यूनिवर्सिटी’ के प्रोफेसर पी योंग शी समेत अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, ये ‘स्मूद पार्टिकल’ 37 डिग्री सेल्सियस के मानवीय शारीरिक तापमान में ‘बम्पी पार्टिकल’ (असमतल कण) में बदल जाते हैं। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार आकार बदलने की इस क्षमता की वजह से विषाणु मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। इसके उपचार और टीके को विकसित करने के लिए विषाणु के आकार बदलने के पीछे के तंत्र को समझना आवश्यक है।

उन्होंने सचेत किया कि पहले से मौजूद टीके और उपचार इन बदलावों के कारण इस विषाणु के लिए अप्रभावी होते जा रहे हैं। सिंगापुर मेडिकल स्कूल की ‘ड्यूक नेशनल यूनिवर्सिटी’ में प्रोफेसर शीमेई लोक ने कहा कि यह अध्ययन डेंगू बीमारी के उपचार और उसके लिए टीका विकसित करने को एक नई दिशा देता है।

उन्होंने कहा कि डेंगू संक्रमण से पहले ही उसके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए ऐसे टीकों को विकसित किया जाना चाहिए जो चिकनी सतह वाले विषाणु पर प्रभावी हो, जबकि डेंगू पीड़ित मरीजों पर ऐसी उपचार पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो असमतल सतह वाले कणों पर प्रभावशाली हो।

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